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म॒हाँ इन्द्रो॑ नृ॒वदा च॑र्षणि॒प्रा उ॒त द्वि॒बर्हा॑ अमि॒नः सहो॑भिः। अ॒स्म॒द्र्य॑ग्वावृधे वी॒र्या॑यो॒रुः पृ॒थुः सुकृ॑तः क॒र्तृभि॑र्भूत् ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mahām̐ indro nṛvad ā carṣaṇiprā uta dvibarhā aminaḥ sahobhiḥ | asmadryag vāvṛdhe vīryāyoruḥ pṛthuḥ sukṛtaḥ kartṛbhir bhūt ||

पद पाठ

म॒हान्। इन्द्रः॑। नृ॒ऽवत्। आ। च॒र्ष॒णि॒ऽप्राः। उ॒त। द्वि॒ऽबर्हाः॑। अ॒मि॒नः। सहः॑ऽभिः। अ॒स्म॒द्र्य॑क्। व॒वृ॒धे॒। वी॒र्या॑य। उ॒रुः। पृ॒थुः। सुऽकृ॑तः। क॒र्तृऽभिः॑। भू॒त् ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:19» मन्त्र:1 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब तेरह ऋचावाले उन्नीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में अब सूर्य कैसा है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (महान्) बड़ा (इन्द्रः) सूर्य (चर्षणिप्राः) मनुष्यों में बिजुली रूप में व्याप्त होने (उत) और (द्विबर्हाः) अन्तरिक्ष और वायु से बढ़ने और (अमिनः) नहीं हिंसा करनेवाला (अस्मद्र्यक्) हम लोगों के सम्मुख हुआ (उरुः) बहुत (पृथुः) विस्तीर्ण (सुकृतः) उत्तम प्रकार उत्पन्न किया गया (भूत्) हो तथा (सहोभिः) बलों और (कर्तृभिः) कर्म करनेवालों के साथ (वीर्याय) पराक्रम के लिये (नृवत्) मनुष्य जैसे वैसे (आ, वावृधे) सब ओर से बढ़ता है, उसको जान कर इष्टसिद्धि करिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे मित्र-मित्र के साथ कार्य की सिद्धि के निमित्त प्रयत्न करता है, वैसे ही ईश्वर से निर्मित बिजुली वा सूर्य सम्पूर्ण कर्मकारियों का सहयोगी होता है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सूर्यः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो महानिन्द्रश्चर्षणिप्रा उत द्विबर्हा अमिनोऽस्मद्र्यगुरुः पृथुः सुकृतो भूत् सहोभिः कर्तृभिस्सह वीर्याय नृवदा वावृधे तं विज्ञायेष्टसिद्धिं कुरुत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (महान्) (इन्द्रः) सूर्यः (नृवत्) मनुष्यवत् (आ) (चर्षणिप्राः) यश्चर्षणिषु मनुष्येषु विद्युद्रूपेण व्याप्नोति (उत) (द्विबर्हाः) योऽन्तरिक्षवायुभ्यां द्वाभ्यां वर्धते (अमिनः) अहिंसकः (सहोभिः) बलैः (अस्मद्र्यक्) अस्माकं सम्मुखीभूतः (वावृधे) वर्धते (वीर्याय) पराक्रमाय (उरुः) बहुः (पृथुः) विस्तीर्णः (सुकृतः) सुष्ठु उत्पादितः (कर्तृभिः) कर्मकारकैः (भूत्) भवेत् ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सखा सख्या सह कार्यसिद्धये प्रयतते तथैवेश्वरनिर्मिता विद्युत्सूर्यो वा सर्वेषां कर्मकारिणां सहयोगी वर्तते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, राजा व प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा मित्र मित्रासह कार्य पूर्ण करण्यासाठी प्रयत्न करतो तसे ईश्वराने निर्माण केलेले विद्युत किंवा सूर्य कर्म करणाऱ्याचे सहकारी असतात. ॥ १ ॥